Tuesday, May 1, 2007

Intezaar kya varshon ka hai

कौन है वो और कब आएगी
इंतज़ार क्या वर्षों का है

सपनों में है, साँसों में है
धुंधली सी वो आंखों में है
मूर्त रुप को कब पायेगी
छोटा लम्हा वर्षों सा है

सोता हूँ कि उसको देखूं
सपनों से पर मुझे जगाये
रूह से उसकी मिल तो चुका हूँ
सच में मिल लूं क्या रास्ता है

हो सकता उसके उर में हो
अवश कटीली डालें भी
पर उसके पल्लू में शायद
छोटा पौधा सरसों का है

उसके जैसी कई दिखती हैं
मुझको भी अच्छी लगती हैं
पर मेरी चाहत में ढलने
का दिन कल या परसों का

One of the first poems by me.

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